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महेश्वर के दर्शनीय स्थान

किले के प्रारंभिक बड़े दरवाजे से प्रवेश करते हुए जब आप लबुज केफे से आगे चलते है तो एक बड़े दरवाजे से होते हुए किला परिसर में पहुच जाते हैयहाँ से शुरू होता है आपका महेश्वर दर्शन


राजवाडा परिसर 
किला परिषर में सबसे पहले आपको राजवाडा दिखाई देगा, इसके भीतर सफ़ेद कवर से ढकी मूल "राजगादी" है जो होलकर वंश की सादगी और सुशासन की प्रतीक है । यहाँ आप होलकर शासको एवं उनके शासनकाल से सचित्र परिचित होंगे, इसके दुसरे सिरे पर उस समय के अस्त्र शस्त्र, पालकी व डोलिया रखी गयी है । यहाँ लगे सूचना पटलो से आप होलकर वंश के देश भर में किये गए पुण्य कार्यो से परिचित हो सकते है ।
आकर्षण :-  राजगादीअस्त्र शस्त्र और अद्वितीय नो बिल्व पत्र का व्रक्क्ष ।


पूजा घर परिसर 
राजवाडा के राइट हेंड पर एक छोटे दरवाजे में प्रवेश करते ही, देवी अहिल्याबाई का पूजा घर परिषर शुरु हो जाता है, सबसे पहले आप यहाँ सम्पूर्ण भारत में बिरली शिवलिंग पूजा "कोटि लिंगार्चन" प्रथा से परिचित होंगे, आगे बड़ते हुए आप पूजा घर देखेंगे यहाँ अन्य वस्तुओ के साथ "सोने के झूले" पर विराजित बालमुकुन्द भगवान मुख्य आकर्षण है, यहाँ अन्य देवी देवताओ की मुर्तिया और शिवलिंग देखने लायक है ।
आकर्षण :- कोटि लिंगार्चन, सोने का झूला, दुर्लभ वट व्रक्क्ष ।


अहिलेश्वर मंदिर
किले परिषर का मुख्य ओर सबसे बड़ा अहिलेश्वर मंदिर "सास बहु के मधुर संबंधो" का प्रतीक है, इस मंदिर को अहिल्या बाई की बहु देवी कृष्णबाई माँ साहिब द्वारा 1865 में देवी अहिल्या के पुण्य कार्यो की याद एवं प्रतीक के तोर पर बनवाना शुरू किया था, ऐसा माना जाता है की इसे बनाने में 36 वर्षो का समय लगा । मंदिर की भव्यता,पाषाण कला और मंदिर की पूरी ऊचाई तक की गयी कलाकारी देखने लायक है ।
आकर्षण :- देवी अहिल्या का श्रधांजलि स्थल ।


विठोबा जी की छतरी
अहिलेश्वर मंदिर से ठीक सामने तूकाजीराव होलकर (प्रथमके पुत्र की याद में इस छत्री को बनाया गया थाइसके चारो तरफ हाथियों की मुद्राओ को उकेरा गया है  छतरी के आस पास के खुले परिसर में किले के भीतरी भाग भाग की दीवारों पर  उकेरी गयी फुल-पत्तियोंदेवी-देवताओपशु-पक्छीनर्तक-न्र्तिकियोआदि कलाक्रतिया उस समय की पाषाण कला का अनुभव कराती है 
आकर्षण :- हाथियों की कलात्मक पोजीसन ।


किला (बाहरी भाग)
किले का मुख्य बाहरी भाग नर्मदा के तट पर लंगढ़ डाले खुबसूरत जहाज के समान दिखाई देता है, इसके प्रत्येक भाग को पाषाण की नक्कासी से तरासा गया है, पहली नजर में ही आपकी यादो में हमेशा के लिए समा जाने वाला "किला" इस शहर की नायब कृति और धरोहर है, इसके आकर्षण का ही जादू है की इसे बेकग्राउंड बनाकर अब तक कई फिल्मो के सीन, म्यूजिक एल्बम, और एड फिल्म्स की सूटिंग की जा चुकी है ।
आकर्षण :- किले का प्रवेश द्वार और दोनों तरफ के बीम ।


किला मैदान और घाट
किले के बाहरी भाग और नर्मदा तट के बीच के किला मैदान के पूर्व में तिल्गंगेश्वर मंदिर (जिसका उपरी हिश्सा टुटा है) दिखाई देता हैं, किला मैदान में "देवी अहिल्या के दहन स्थल" और कतारबद्द लगभग 1 km तक फैले छोटे बढे घाटों की श्रंखला को देख सकते है, जिनमे पेशवा घाट, फणसे घाट, अहिल्या घाट, मातेंगेश्वर घाट प्रमुख है, अधिक गहरे होने और फिसलन से इन घाटो पर नहाते समय सावधानी जरुर बरते ।
आकर्षण :- घाटो की लम्बी श्रंखला और देवी अहिल्या का दहन स्थल 


काशी विश्वनाथ मंदिर
१७८६ में बना किले में पूर्वी भाग में दिखने वाला प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर महेश्वर के "नगर मंदिर" के समान है, यहाँ विशाल नंदी एवं माँ अहिल्या द्वारा स्थापित शिवलिंग दर्शनीय है, विशाल बीम और शिखर तक की गयी कलाकृति देखने लायक है, यह मंदिर परिसर संत महात्माओ के लिए सिद्द क्षेत्र  है । श्रावण माह के प्रति सोमवार को यहाँ विशेष पूजा-अर्चना, भोग और शिवलिंग को श्रृंगारित किया जाता हैं । 
आकर्षण :- विशाल नंदी, सिखर और विशाल स्तंभ ।


राजराजेश्वर मंदिर
महेश्वर के राजा सहस्त्रबाहू का समाधि स्थल और यहाँ का प्रमुख मंदिर है, यहाँ वर्षो से " 11 अखंड नंदादीप" प्रज्वलित हैं, परम शिव भक्त देवी अहिल्या यहाँ नित्य पूजन करने आती थी । दीप दर्शन से आरोग्य एवं सम्रद्दी के प्राप्ति होती है, मनौती पूर्ण होने पर यहाँ शुद्ध घी चढ़ाया जाता हैं । "पंचायतन श्रेणी" के इस मंदिर के चारो ओर सूर्य, गणपति, विष्णु, राम, स्थापित हैं, पास मे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर भी दर्शनीय हैं ।
आकर्षण :-  शुद्द घी के 11 प्रज्वलित अखंड नंदादीप ।

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Other Palace for Visit

किला परिसर एवं उसके आस पास के दर्शनीय स्थलों के आलावा महेश्वर के आस पास करीब 4 किलो मीटर के दायरे में अन्य ऐतिहासिक स्थान भी है जो देखने लायक है...


जालेश्वर महादेव मंदिर 
किले से की.मी. दूर महेश्वरी एवं नर्मदा नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर अत्यंत प्राचीन हैपुराणों के अनुसार "पाशुपतास्त्र" से भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था । उसी दिव्य शत्र का कुछ भाग यहाँ गिराजिससे जालेश्वर लिंग की उत्पति हुई । मंदिर के उत्तरीय और मंडन मिश्र देवी शारदा एवं जगत गुरु शंकराचार्य का शास्त्रार्थ स्थल हैं । मंदिर के निचे नर्मदा तट पर सात माता तीर्थ है ।
आकर्षण :- दिव्य शस्त्र का यहाँ गिरनाशंकराचार्य का शास्त्रार्थ स्थल ।


कालेश्वर महादेव मंदिर 
शहर से  मंडलेश्वर रोड की और की.मी. के दायरे में जालेश्वर मंदिर के ठीक सामने महेश्वरी नदी के पूर्वी तट पर कालेश्वर शिवलिंग स्थापित हैं । यह मंदिर भी जालेश्वर मंदिर के समान 1000 वर्षो से अधिक प्राचीन होकर पुराणों में उल्लेखित है । इसे "आदि शिवलिंग" के नाम से भी जाना जाता है । वर्तमान में इस मंदिर के चारो ओर उपयोगी पोधो का बगीचाशांत और शीतल लगती हैं ।
आकर्षण :- बगीचा और कालेश्वर शिवलिंग ।


संग्रहालय
सिटी से लगभग किलो मीटर के दुरी पर ( ढापला रोड ) पर महेश्वर का शासकीय संग्रहालय हैं । ग्राउंड और फ़स्ट फ्लोर में बटे सैटेलाईट लुक वाले इस संग्रहालय में आप होल्कर वंश एवं उससे पहले के "पुरातत्व संग्रह" को देख सकते हैं । शहर से दूर किन्तु पुरातत्व संग्रह को देखने का यह अच्छा स्पोट हैंमहेश्वर आकर इसे बिना विजिट किये जाना पुरातत्व संग्रह को मीस करने जैसा हैं 
आकर्षण :- पुरातत्व संग्रह ।


बडदक्खन हनुमान मंदिर
शहर से की.मी. के दायरे में रेस्ट हॉउस के सामने बडदक्खन हनुमान मंदिर प्राचीन और इस शहर से सभी हनुमान मंदिरों में से प्रमुख हैं"हनुमान जयंती" पर यहाँ स्थानीय मंदिर समिति द्वारा विशेष पकवानों का भोग लगाकर भंडारा आयोजित किया जाता हैंजिसमे हजारो की संख्या में लोग शामिल होते हैंमंदिर के आस पास उपयोगी वृक्ष और वाटिका इसे अच्छा परिसर बनाती  हैं 
आकर्षण :- एकांत वातावरण और हनुमान जयंती पर विशेष भंडारा ।



श्री दत्त मंदिर
सहस्त्रधारा के ठीक सामने जलकोटि ग्राम में "श्री नारायण स्वामी जी (महाराष्ट्र)" के अनुयायियों के द्वारा निर्मित यह आधुनिक मंदिर हैंजिसमे सेवासमर्पण और भक्ति भाव की झलक हैं । भूमिगत परिक्रमा स्थल और लम्बा चौडा खुला परिसर इसका प्रमुख आकर्षण हैं । प्रति गुरुवार शाम को आरती और प्रसादी वितरण के समय स्थानीय और आस-पास के हजारो भक्त यहाँ पहुचते है ।
आकर्षण :-  भूमिगत परिक्रमा स्थल और गुरुवार की विशेष पूजा ।

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भगवान शिव का शहर महेश्वर...

इंदौर से  90  की.मी. की दुरी पर   " नर्मदा   नदी"   के किनारे बसा यह खुबशुरत पर्यटन स्थल   म.प्र. शासन द्वारा   " पवित्र नगरी"   का दर्जा प्राप्त है ,  अपने आप में कला ,  धार्मिक ,  संस्कृतिक ,  व एतिहासिक महत्व को   समेटे यह   शहर लगभग  2500  वर्ष पुराना हैं  |  मूलतः यह  " देवी अहिल्या"   के कुशल शासनकाल और उन्ही के कार्यकाल ( 1764-1795)  में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनाना शुरू की गयी   " महेश्वरी साड़ी"   के लिए आज देश-विदेश में जाना जा रहा हैं  |  अपने   धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के समान भगवान शिव की नगरी है ,  मंदिरों और शिवालयो की निर्माण श्रंखला के लिए   इसे  " गुप्त काशी"   कहा गया है  |  अपने पोराणिक महत्व में स्कंध पुराण ,  रेवा खंड ,  तथा वायु   पुराण आदि   के नर्मदा रहस्य में इसका   " महिष्मति"   नाम से विशेष   उल्लेख है  |  ऐतिहासिक महत्त्व में यह शहर   भारतीय संस्कृति में स्थान रखने वाले राजा   महिष्मान ,  राजा   सहस्त्रबाहू (जिन्होंने रावण को बंदी बनाया था) जैसे राजाओ और वीर पुरुषो की राजधानी रहा है ,  बाद