इंदौर से 90 की.मी. की दुरी पर "नर्मदा नदी" के किनारे बसा यह खुबशुरत पर्यटन स्थल म.प्र. शासन द्वारा "पवित्र नगरी" का दर्जा प्राप्त है, अपने
आप में कला, धार्मिक, संस्कृतिक, व एतिहासिक महत्व को समेटे यह शहर
लगभग 2500 वर्ष पुराना हैं | मूलतः यह "देवी
अहिल्या" के कुशल शासनकाल और उन्ही के कार्यकाल (1764-1795) में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनाना शुरू की गयी "महेश्वरी साड़ी" के लिए आज देश-विदेश में जाना जा रहा हैं | अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के समान भगवान
शिव की नगरी है, मंदिरों और शिवालयो की निर्माण श्रंखला के लिए इसे "गुप्त काशी" कहा गया है | अपने पोराणिक महत्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड, तथा
वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में इसका "महिष्मति" नाम से विशेष उल्लेख है | ऐतिहासिक महत्त्व में यह शहर भारतीय संस्कृति में स्थान रखने वाले राजा महिष्मान, राजा सहस्त्रबाहू (जिन्होंने रावण को बंदी बनाया था) जैसे राजाओ और वीर पुरुषो
की राजधानी रहा है, बाद में होलकर वंश के कार्यकाल में इसे प्रमुखता
प्राप्त हुई | आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं हुआ था। यह जिले की
एक तहसील का मुख्यालय भी है ।
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लम्बा-चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला "किला" इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है | समय-समय पर इस शहर की गोद में मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार, उत्सव-पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगाते है, जिनमे शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, लोकपर्व गणगौर, नवरात्री, गंगादशमी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं श्रावण माह के अंतिम सोमवार को भगवान काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की "शाही सवारी" प्रमुख है |
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